नज़राना इश्क़ का (अंतिम भाग )
"किसी की मुहब्बत का खून करके, अब तुम्हें मोहब्बत पाने का कोई हक नहीं रहा निमय शर्मा! तुमने मेरी मोहब्बत को मार डाला, इसलिए अब तुम्हें भी जीने का कोई हक नहीं था। अलविदा मेरे दोस्त… अब नरक में मिलेंगे..! हाहाहा..!" राजा शराब के नशे में पागलों की तरह झूमता हुआ, एक हाथ में बंदूक लिए, दूसरे में बोतल, नशीली आंखों में जहर भर के अट्ठाहास करते हुए चिल्लाया। उसका खुद पर कोई नियंत्रण नहीं था, पागलों की तरह कभी हंसता तो कभी रोता हुआ, शराब की बोतल को बेतहाशा चूमते हुए वो डगमगाते हुए चला जा रहा था।
"आज तो ये धरती ही डोल रही है रस्साली..! अबे यार मेरी खुशी में इतना भी खुश मत हो कि मैं खुशी से पागल हो जाऊं..! लगता है आज कुछ ज्यादा ही चढ़ गई है, पर मुझे क्या.. मुझे कौन सा किसी के इश्क में मरना है, मेरा इश्क तो पहले ही मर चुका…!" लड़खड़ाकर चलते हुए वह अपने सीने को बाई ओर दबाते हुए बोला। उसकी आंखो से आंसू निकल आए पर वह बस हंसता ही रहा, वहां दूर दूर तक किसी का अता पता नहीं था।
शाम हो चुकी थी, दिन पूरी तरह से ढल चुका था। राजा अपनी धुन में मस्त चीखता चिल्लाता सड़क के एक किनारे से चल रहा था। जो सड़क काफी बुरी तरह टूटी फूटी हुई थी। उसके किनारे की नाली में पूरी तरह से कचरा भरा हुआ था।
"मैंने बहुत कोशिश की कि तुझे ना मारू, पर ये कमबख्त इश्क जो ना करवा दे, शिक्षा ने भी तेरे इश्क़ में बावरी होकर मुझ पर हाथ उठाया था, मेरे इश्क की तौहीन की थी, मैं तो बस उसे खुश देखना चाहता था, उसे खुशियां देना चाहता था.. पर नहीं..! ये लोग पता नहीं कौन से इश्कबाज़ है जिन्हें बस दर्द में ही मजा आता है।" कहते हुए राजा बुरी तरह से फूट फूटकर रोने लगा। बहुत ज्यादा शराब पी लेने के कारण उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे निमय उसके आसपास ही कही हो। "पर ये तो मानना पड़ेगा कि ये सच है.. साला ये इश्क ही दुनिया के सबसे बड़े दर्दों की जड़ है। हाहाहा…! इश्क माने दर्द, दुख, तकलीफ...इश्क माने मौत..! हाहाहा…! मरो सब मरो…!" वह फिर पागलों की भांति जोर जोर से हंसने लगा, उसका ध्यान सामने की ओर बिलकुल भी ना था, उसका एक पैर नाली में फिसला वो धम्म से नीचे गिर गया, शराब की बोतल उसके ठीक नीचे आ गई, और बोतल के टूटनेके साथ ही उसके सीने में कई सारे कांच के टुकड़े चुभ गए, वह एक पल को अचंभे में पड़ा, उसकी लाल बड़ी बड़ी आंखे बाहर निकलकर आने लगी पर दूजे पल ही उसके होंठो पर शरारत भरी मुस्कान आ गई, वह जोर जोर से हंसता हुआ नाली में गिरता चला गया और बेहोश हो गया, उसकी छाती पूरी तरह खून से लथपथ हो चुकी थी।
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शिक्षा अपने कमरे में बिस्तर के नीचे पड़ी हुई थी, उसके कपड़े अस्त व्यस्त थे, हालत बहुत ही बुरी नजर आ रही थी, उसने अपना कमरा अंदर से बंद कर रखा था। निमय के बारे में जानकर उसे गहरा सदमा लगा था, वह जानती थी कि यह राजा ही रहा होगा, उसी ने निमय को मार डाला। वह कभी खुदपर गुस्सा करती, कभी रोने लगती..! उसकी आँखों से झरझर कर आंसू बहाते जा रहे थे। दरवाजे के बाहर से उसके पिता उसको दरवाजा खोलने की मिन्नतें कर रहे थे, समझाने की कोशिश कर रहे थे मगर उनके अब तक के सारे प्रयास असफल हो चुके थे। उन्हें खुद भी पता नहीं चला कि मनमानी और अय्याशी के अलावा उनकी बेटी सच में किसी से दिल लगा ली, रह रहकर उन्हें राजा की सारी बातें याद आती थी मगर राजा अब उनसे बहुत दूर चला गया था, उसका कोई अता पता नहीं था।
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सुबह होने वाली थी, निमय शाम को एक बार होश में आकर फिर दुबारा बेहोश हो चुका था। अभी तक सभी हॉस्पिटल में ही बैठे हुए थे। जाह्नवी और फरी को श्रीराम और जानकी जी के आने के बाद थोड़ी राहत तो मिली, मगर खाना फिर भी गले से न उतरा, सभी का चेहरा रूखा सूखा नजर आ रहा था। विक्रम अब भी स्वयं को सामान्य बनाये रखने की कोशिश कर रहा था। तभी उन्हें डॉक्टर सुमन आती हुई नज़र आई, विक्रम दौड़कर उनके पास गया।
"डॉक्टर...! मेरा दोस्त कब तक ठीक हो जाएगा?" विक्रम आशा भरी निगाहों से उनकी ओर देखता हुआ बोला।
"फिलहाल वह खतरे से पूरी तरह बाहर है, उसका थोड़ी देर के लिए ही सही होश में आना ये बात तय करता है कि वो जल्दी ही ठीक हो जाएगा।" डॉक्टर सुमन ने भारी स्वर में कहा।
डॉक्टर सुमन जो कि उम्र में काफी कम लगती थी, वे फिलहाल यहां कुछ ही दिनों पहले इंटर्नशिप के लिए आयी हुई थी। उन्होंने न्यूयार्क से अपनी मेडिकल स्टडीज कम्पलीट की थी, मगर वो अपने देश में रहकर देश सेवा करनी चाहती थी। वे हृदय संबंधी रोगों की बहुत अच्छी जानकार और बेहतरीन सर्जन थी, जिस कारण वे थोड़े ही दिनों में हॉस्पिटल में काफी मशहूर हो चुकी थी मगर उन्हें इन सबसे कोई लेना देना न था। वे हमेशा हर किसी की मदद करते रहती थी, हर किसी के तकलीफ को दूर करने की कोशिश करती थी मगर पूरे हॉस्पिटल में उन्हें किसी ने मुस्कुराते नही देखा था।
सुमन के चेहरे पर गंभीर भाव थे, विक्रम एक पल को उसे बस देखता ही रह गया।
"क्या हुआ? साइड हटो..! तुम्हारा दोस्त जल्दी ही ठीक हो जाएगा।" सुमन ने उसे घूरते देख कठोर स्वर में कहा।
"अजीब लड़की है यार…! डॉक्टर बन गयी तो क्या हुआ….!" विक्रम बुदबुदाते हुए छत की ओर देखने लगा। सुमन उसपर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ गयी।
"क्या हुआ बेटा?" श्रीराम ने विक्रम के उतरे चेहरे को देखकर कहा।
"कुछ नहीं पप.. अम्म मेरा मतलब अंकल जी! वे कह रही थी कि निमय जल्दी ही ठीक हो जाएगा।" विक्रम ने लड़खड़ाते हुए स्वर में जबरन मुस्कुराने की कोशिश कर कहा।
"वो डॉक्टर हैं?" जानकी जी ने पूछा।
"हाँ…! खड़ूस…!" विक्रम ने हां में सिर हिलाया।
"क्या कहा तुमने?" जाह्नवी उसे घूरते हुए बोली।
"वही जो तुमने सुना!" विक्रम का गंदा सा मुँह बन गया।
"विक्रम और फरु बेटा! आप लोग कल से यही रुके हुए हैं, अब आपको घर जाना चाहिए। अब तो डॉक्टर ने भी कह दिया कि वो जल्दी ठीक हो जाएगा।" श्रीराम जी ने उन्हें समझाते हुए कहा।
"देखिए अंकल जी यही बात आप रात से बोले जा रहे हैं, ये गलत बात है ना! आप इतने अच्छे हो कि हमारे साथ रहने पर आपके बेटे को इतना कुछ हो गया, फिर भी हमें कुछ कहने के बजाए अपने बच्चों जैसा ट्रीट कर रहे हैं, फिर हम क्या इतने मतलबी हो जाये जो अपने दोस्त को छोड़ जाएं?" विक्रम बच्चों की तरह जिद करता हुआ बोला। फरी बस चुपचाप बैठी थी, उसे लगा निमय को होश आया गया वह उसे अपने दिल की सारी बात कहेगी, पर वह उसके पहुँच पाने से पहले ही बेहोश हो गया। उसे इतनी मशीनों के बीच अकेला देखकर उसके मन में एक डर सा बैठ गया था, वह वहां बैठी तो थी मगर उसका ध्यान वहां बिल्कुल न था। उसका तन वहां होने के बावजूद मन निमय के पास ही भटक रहा था।
"जो होना होता है हो जाता है बेटा! ईश्वर ने सब पहले से ही तय किया हुआ है फिर हम कौन होते हैं बीच में कुछ बोलने वाले? जो होना है हो ही जाता है, हमें बस इतना पूर्ण विश्वास है कि कन्हैया हमारे लाल का एक बाल तक बिगड़ने न देंगे।" जानकी जी ने अपने चेहरे पर विश्वासपूर्ण मुस्कान लाते हुए कहा। यह सुनकर विक्रम एक पल को सोच में पड़ गया कि क्या कोई माँ बाप इतना अधिक विशाल हृदय का हो सकता है जो अपने बच्चे को साक्षात मृत्यु के द्वार पर देखकर भी चिन्तामुक्त रह सके। सहसा उसे कैच ख्याल आया, उसे अपना जवाब मिल चुका था। हाँ! अगर किसी को अपने संस्कार और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास हो तो ऐसा हो सकता है, क्योंकि ईश्वर का अर्थ कदाचित प्रेम और विश्वास ही है। वह चकित सा उनकी तरफ देखता रहा, जो मां बाप पिछली बार थोड़ी सी चोट में घबरा गए थे, वे इस बार अपने हृदय को मजबूत कर बैठे थे, क्योंकि वे जानते थे कि निमय अगर उनकी आँखों में आँसू देखा तो फिर वो इसके लिए खुद को दोषी मानकर बैठ जाएगा, और इस समय वे ऐसा बिल्कुल नहीं होने दे सकते थे। विक्रम स्वयं भी ऐसा ही कुछ कर रहा था मगर जाह्नवी और फरी अपने दिल को नहीं समझा पा रही थी, दोनो अपने आप को दोषी मानकर कोसने में लगी थी।
अब तक सुबह के दस बज चुके थे। सभी बस एक दूसरे को देखते ताकते बैठे हुए थे। किसी के पास कहने के लिए कुछ नहीं था, वे मुड़ मुड़कर आने जाने वाले लोगों को देखते रहते और उम्मीद करते कि कोई तो उन्हें निमय के बारे में बताएगा।
"पेशेंट 89 को दुबारा होश आया गया। अम्म… निमय शर्मा को दुबारा होश आया गया, उनके घर से अगर कोई मिलना चाहता है तो अभी जा सकता है।" एक वार्डबॉय एक कमरे से बाहर झाँकता हुआ चिल्लाया। इतना सुनते ही सभी उठ खड़े हुए और उस ओर भागे, सभी ने बाहर से देखा निमय आईसीयू में मशीनों के बीच घिरा हुआ था, उसे अब तक ड्रिप लगी हुई थी, उसका चेहरा पूरी तरह निस्तेज होकर पीला पड़ चुका था, उसकी आँखें अंदर धँसी हुई नजर आ रही थी। वह शायद भीषण दर्द में था, मगर दवाइयों के कारण उसका एहसास बहुत कम हो चुका था।
"सॉरी सर! पर कमरे में कोई एक ही जा सकता है!" वार्डबॉय ने उन सबको बाहर खड़ा देखकर कहा।
"मम्मी जी आप जाओ..!" विक्रम ने जानकी जी की ओर देखता हुआ कहा।
"वो ठीक है, मैं जानती हूँ।" जानकी जी ने अपने आँखों के आँसू छिपाने की कोशिश करते हुए कहा।
"जानू आप जाओ..!" फरी ने शून्य में देखते हुए कहा।
"मेरे ख्याल से फिलहाल उसके पास तुम्हें होना चाहिए बेटा!" श्रीराम जी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा। यह जाह्नवी के होंठो पर हल्की मुस्कान आ गयी, विक्रम और फरी दोनो उनकी ओर हैरानी से देखते रहे।
"अब देख क्या रही हो, पापा ने कह दिया न। अब जाओ..!" जाह्नवी उसे जबर्दस्ती भेजते हुए बोली। "चलिए अब सब बैठते हैं।" कहते हुए जाह्नवी वहां से आगे बढ़ गयी।
फरी धीरे धीरे कमरे में घुसी, हर कदम के साथ उसका दिल जोर से धक्क करता। कमरे में अजीब सी बू आ रही थी, निमय की हालत देखकर फरी से रहा नहीं गया उसके आँखों में आँसू भर आये और सारे बांध तोड़कर बह निकले। निमय उसकी ओर देखकर धीरे से मुस्कुराया।
"बस करो न! ऐसे कौन करता है यार..! अब रोना बन्द करो नहीं तो देख लेना…!" निमय ने मुस्कराकर कहने की कोशिश की पर उसका मुँह बन गया।
"आप नहीं समझोगे ये बात..! जब दिल पे लगती है ना तो दिल ही जानता है।" फरी ने उससे नाराज़गी भरे स्वर में कहा।
"शायद..! पर मैं इतना जानता हूँ कि दर्द चाहे कोई भी हो, मेरी दवा तुम हो..!" निमय मुस्काया।
"बस न..! बहुत गंदे हो आप!" फरी का मुँह बन गया, वह किसी छोटे बच्चे की तरह बिहेव करने लगी थी, यह देख निमय की मुस्कान और भी गहरी हो गयी।
"ठीक है, पहले आप अपनी बात पूरी करो न…!" निमय उसकी आँखों में झाँकता हुआ बोला।
"कैसे कहूँ…! समझ नहीं आता…! कभी कभी लगता है कि बस बिन बोले आपको देखती रहूं, आपको मेरी आँखें बोलती हुई नजर नहीं आती क्या…!" फरी ने निमय की आँखों में झाँकते हुए कहा। निमय बस मुस्कुराता रहा।
"मुझे प्यार का कुछ नहीं पता, ये तक नहीं पता कि प्यार होता क्या है, इसे जाहिर कैसे करते हैं! बस जानती हूँ तो बस इतना कि आपसे सबकुछ कहना, आपके साथ रहना मुझे अच्छा लगता है। मैं बस चाहती हूं कि मैं एक बार मुस्कुराने की वजह बन सकूं। मुझे शब्द नहीं मिलते, आपके सामने मेरी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती। शायद प्यार बेआवाज होता हो, शायद इश्क़ खामोशी का दूसरा नाम हो, पर मैं बस इतना जानती हूँ कि मेरी दिल धड़कने आपके नाम से धड़कने लगी हैं। मुझे कोई चाँद तारों की ख्वाहिश नहीं है, मुझे बस चंद कदम आपके साथ चलना है, जब मेरे गालो पर झुर्रियां पड़ चुकी होंगी, आँखों पर इससे भी बड़ा चश्मा लग चुका होगा, शायद चलने उठने में भी बहुत दिक्कत होगी, पर मैं चाहती हूं उस आखिरी रात तक आपके साथ चलती रहूं जिसके बाद मेरी कोई सुबह न हो...मैं आपके सारे सुख दुख से अपना हिस्सा लेना चाहती हूं…!" फरी बस कहती चली गयी, उसका गला भर आया था, आँखों से फिर मोती बहने लगे। निमय के आँखों में भी आँसू आ गए। "क्या आप मेरे साथ तब तक चल सकोगे…! सच कहूं तो मुझे 'आई लव यू' पर कोई यकीन नहीं है, पर मैं इतना दावा कर सकती हूँ कि पूरी दुनिया में आपके अलावा किसी और के साथ अपना सफर तय नहीं कर सकूंगी। मुझे इस सफर में आपका साथ चाहिये…बोलो मेरे हमसफर बनोगे न….?"
"ह...हां! मैं तो जाने कब से तुम्हारा हो जाने को तैयार हूं।" निमय को जैसे अपना सपना पूरा होता नजर आया, वह उठकर फरी को गले से लगा लेना चाहता था मगर ऐसा कर न सका, पर फरी ने उसकी आँखों में इस चाहत को देख लिया था, वह उसके गले से लग गयी।
"अब आप जल्दी से ठीक हो जाओ! बहुत जल्दी से…!" फरी मुस्कुराते हुए बोली।
"अब से आप जो कहेंगी वही करूँगा मेरी जान!" निमय के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी।
"तो जल्दी से ठीक हो जाइये अब…!" मुस्कुराते हुए फरी ने कहा, और बाहर की ओर चली गयी। वे दोनों एक दूसरे के साथ सारा समय बिताना चाहते थे, मगर अब मिलने का समय समाप्त हो चुका था।
निमय को ठीक हालत में देखकर सभी बारी बारी से घर जाकर नहा धोकर, खा पी लिए, विक्रम ने अपनी कार की चाभी फरी को दिया और दूसरी कार से ऑफिस को चला गया। अब विक्रम और जाह्नवी के साथ श्रीराम और जानकी जी भी फरी के चमकते चेहरे का राज जान चुके थे, उन्होंने एक दूसरे की ओर देखा और अपनी मूक सहमति प्रदान कर दी।
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करीबन तीन दिन बाद..!
अब ऑपरेशन होने के बाद चार दिन बीत चुके थे, निमय बहुत तेजी से रिकवर कर रहा था, उसकी हीलिंग क्षमता को देखकर डॉक्टर्स भी काफी हैरान थे। अब उसे आईसीयू से नार्मल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था, जहां सभी उससे बड़ी आसानी से मिल सकते थे। न जाने क्यों डॉक्टर सुमन को इनकी दोस्ती, इनका ये रिश्ता भाने लगा था, वे अब इनसे काफी अच्छे से बात किया करती थी। हालांकि वह उम्र में इनसे तीन चार साल बड़ी थी, पर ऐसा लगता नहीं था, परन्तु वह अब भी किसी से दोस्ती करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती थी पर कुछ तो ऐसा था जो उसके मन को सुकून देता था।
"डॉक्टर.. डॉक्टर हम अब इन्हें कितने दिन में यहां से ले जा सकते हैं?" फरी ने डॉक्टर सुमन को बाहर देखते ही पूछा।
"एक दो दिन में..!" डॉक्टर के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैल गयी।
"पर मैं तो आज ही एकदम ठीक हूँ, देखिए मैं फिट हूँ एकदम…!" निमय ने उठकर बैठते हुए कहा।
"तो सीधा ये कहो न कि हॉस्पिटल छोड़ के जाना चाहते हो, एक्चुअली मैं अभी तुम्हें डिस्चार्ज करने की ही आयी हूँ।" डॉक्टर सुमन ने डाँट लगाया तो निमय की सिट्टी पिट्टी गुल हो गयी, पर जब उनसे पूरी बात सुनी तो राहत की सांस ली।
"थैंक यू डॉक्टर…!" पीछे से जाह्नवी आते हुए बोली।
"किसलिए…!" सुमन ने उसकी ओर देखकर पूछा।
"इस लीचड़ को सुबह सुबह इतना मस्त सुनाने के लिए..!" जाह्नवी ने मुँह टेड़ा करते हुए कहा, यह सुनकर फरी और सुमन दोनो की हँसी छूट गयी।
"अब ये क्या था लेकिन….!" निमय ने उठते हुए गन्दा सा मुँह बनाया।
"लेट जाओ…!" सुमन ने आदेश देने के स्वर में कहा। "इसे कम से कम अभी दस दिन तक उठने मत देना।" सुमन ने उन दोनों को देखते हुए कहा। "ये सारी दवाइयां ले लेना, और टाइम से खिला दिया करना।" डॉक्टर ने जाह्नवी को प्रिस्क्रिप्शन पकड़ाते हुए कहा।
"ये तो गलत बात है यार! पहले एक ही थी, अब तीन तीन मिल के जुल्म कर रहे हैं।" निमय लेटते हुए मुँह बनाकर बोला।
"अब चुपचाप लेट जाओ, ज्यादा ना बोला करो, वरना मुँह बन्द करने वाली इंजेक्शन लगा दूंगी।" सुमन ने धमकाते हुए कहा।
"हाँ हाँ बिल्कुल लगा दीजिये…!" जाह्नवी उछलते हुई बोली।
"नहीं…!" फरी का चेहरा पिला पड़ चुका था।
"ये प्यार करती है ना इससे?" सुमन ने फरी की ओर देखते हुए जाह्नवी से पूछा, फरी का सिर झुका गया था, जाह्नवी के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी। इतना कहते ही डॉक्टर वहां से बाहर जाने लगी।
"ये क्या हाल कर दिया मेरे दोस्त का..!" उसी समय विक्रम अंदर आता है बोला।
"कुछ भी नहीं खड़ूस..!" सुमन ने हँसते हुए कहा। "अब इसे घर लेते जाओ!"
"अब इसे ये बात कौन बताया?" विक्रम ने जाह्नवी की आई इशारा कर पूछा।
"मैं क्या जानू..!" जाह्नवी ने कंधे उचकाकर उत्तर दिया।
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तकरीबन एक महीना बाद…!
चारों भीषण गर्मी में राहत के लिए ढेबर झील गए थे। इस झील को एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील होने का गौरव प्राप्त है। चारों तरफ नीले रंग का पानी, पास में छोटी छोटी घास, वहां की मिट्टी से एक अलग खुशबू आ रही थी जो मन को मोह ले रही थी।
शाम का समय हो रहा था, सूरज भगवान फिर बादलों की ओट लेते हुए पहाड़ो के पीछे छिपने चल दोय थे, धीरे धीरे उनका रंग पीला पड़ता जा रहा था। यह बहुत ही सुहावना दृश्य था।
"ये जगह कितनी खूबसूरत है ना..!" फरी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"पर तुमसे ज्यादा नहीं..!" निमय ने मुँह बनाकर कहा।
"कहीं से तो जलने की बू आ रही है..!" विक्रम खीखीखी करता हुआ बोला।
"अब तो पापा मम्मा भी मान गए हैं, शादी कर लो न..!" जाह्नवी ने मुँह बनाकर कहा। "मेरी भाभी को मेरी परमानेंट भाभी बना दो…!"
"हें…!" फरी शर्म के मारे अपना चेहरा छुपा ली।
"हाँ कम से कम तेरा बचपन से जो ताना सुनने को मिल रहा था वो तो बन्द होगा, भगवान किसी को ऐसे तीन मिनट बड़ा मत बनाना किसी से…!" निमय आकाश की ओर देखता हूं बोला।
"वो तो कभी बन्द नहीं होगा भाई साहब..! चाहे अब हमें कितना भी कोस लो..!" जाह्नवी ने मुँह बनाया।
"फिर देखते हैं.. तुझे भी घर से बाहर निकालना ही पड़ेगा..!" निमय ने मुँह बनाया, फरी उसकी ओर देखती रही।
"हाँ…! करके तो देखो, देखती हूँ कौन करता है मुझे घर से बाहर..! टांगे न तोड़ दू उसकी…!" कहते हुए जाह्नवी वहां से दूर चली गयी।
"अब फिर मेरा क्या होगा…!" विक्रम आसमान की ओर देखते हुए दूसरी ओर आगे बढ़ गया।
"इन्हें क्या हुआ..!" फरी को थोड़ी चिंता हुई।
"कुछ नहीं मेरी जान..! हमारी जान तो ये दोनों भी हैं..!" निमय ने दांत दिखाया। फरी भी यह देखकर मुस्कुरा दी, दोनो एक दूसरे के गले लग गए, निमय फरी की आँखों में अपना अक्स देखता रहा, फरी ने लाज के मारे अपना चेहरा ढक लिया, दोनो के नाक आपस में टकराने लगी, दोनो एक दूसरे के सांसो की गर्मी को महसूस करने लगे, दोनो के शरीर शिथिल पड़ते चले गए, आँखें स्वतः ही बंद होने लगीं, साँसों की गर्मी ने वातावरण को गर्म कर दिया। धीरे धीरे होंठ टकराने लगे थे, वातावरण संगीतमय हो उठा, मानों किसी मशहूर संगीतकार ने कोई सुंदर, अप्रतिम प्रेम राग छेड़ दिया हो। वे दोनों एक दूसरे के बाहों में पड़े रहे, सूर्य की लाली भी अब समाप्त हो चुकी थी, दिन पूरी तरह से ढल चुका था, मगर प्रेम उसी क्षितिज पर ऊर्ध्व की ओर बढ़ता जा रहा था। दोनो ने प्रेम को पा लिया था, दोनों ने एक दूसरे के रूह को पा लिया। एक दूजे का साथ, हाथों में हाथ, एक दूजे के बाहों में सुकून.. आँखों में करार.. बस यही तो है नज़राना इश्क़ का!
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बुन रहे हैं ख्वाब कोई, जो दे मिशाल यहां
आए धड़कन में जब भी मुहब्बत का ख्याल यहां
धुन कोई है लहर जैसे, दिल के गलियों से गुजरी
सारी खुशियां मेरी हुई, जो तुम हुए मेरे यहां।
अब रहना एक दूजे की बाहों में उम्रभर
तेरी आंखों में पढ़ना मुझे अफसाना इश्क का
तुम सिर्फ मेरी रहो, मैं सिर्फ तेरा रहूं
बस इतना ही है तेरा मेरा नज़राना इश्क का!
#निमफरु
: नज़राना इश्क का..!!
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समाप्त..!
Abhinav ji
31-Aug-2022 07:16 AM
Very nice👍
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मनोज कुमार "MJ"
16-Aug-2023 12:34 PM
dhanyawad
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shweta soni
30-Jul-2022 08:44 PM
Nice 👍
Reply
मनोज कुमार "MJ"
16-Aug-2023 12:34 PM
dhanyawad
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Seema Priyadarshini sahay
27-Feb-2022 01:28 AM
👌👌👌👌
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 05:30 AM
Thank you so much ma'am 🥰
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